यहाँ
त्वरित दंड जैसे मृत्यु दंड उनके लिए न्याय संगत है जहा जुर्म करने वाला पहले ही
दोषी स्पष्ट है परन्तु जब आपको फसाया गया होतो इससे निर्दोषो को सजा मिलती है
अपितु मुजरिम के। सजा का दूसरा पहले ये भी देखा जाता है की आपने किन परिस्तिथियों
में जुर्म किया। और
क्या एनकाउंटर और
मृत्युदंड जैसे सजा से औरों को सबक मिलता है ???
महिला सुरक्षा पर
बात होने पर परिवार को बुजुर्ग महिलाओं ने मुझे समझाने की कोशिश की कि जब तक घृणित
अपराधों के लिए मृत्युदंड जैसी कड़ी सजा नहीं दी जाएगी,
तब तक समाधान नहीं होगा। उनकी धारणा है कि आजीवन कारावास कोई सजा ही
नहीं है। मैंने कहा अपने लिए आजीवन कारावास की कल्पना करें, तब
उन्हें एहसास हुआ की ये कितना भयावह होगा। लोकतंत्र और सभ्य समाज में न्यायिक
प्रक्रिया के वास्तव में चार उद्देश्य होने चाहिए- रोक, दंड, सुधार और पुनर्वास।
आम लोगों की सोच में दो पहलू ही सामने आते हैं। तीसरे और चौथे पहलू को समझने के
लिए तीन उदाहरण ले लीजिए।
>>पहला उदाहरण है
शाहिद (आजमी) नाम के वकील का,
जिसकी जिंदगी पर फिल्म भी बनी। मुंबई में 1992 के हिंदू- मुस्लिम
फसाद के बाद उसे झूठे केस में फंसाया गया और सबूत के अभाव में छोड़ दिया गया। कुछ
साल बाद टाडा के तहत उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल में सात साल बिताने पड़े। सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा बरी होकर उसने वकालत की पढ़ाई की। फिर झूठे मामलों में फंसे लोगों
के केस लड़े और 17 लोगों को रिहा करवाया।
2010 में उसकी
हत्या कर दी गई। हत्यारों को अब तक सजा नहीं मिली।
>>अगला किस्सा है
फूलन देवी का। पति द्वारा उत्पीड़ित दलित महिला डाकुओं
के गिरोह में शामिल हो गई। कुछ समय बाद उसके साथ दुष्कर्म हुआ। एक साथी ने उसे
बचाया और दोनों साथ हो लिए। फिर झगड़ा होने पर गिरोह के कुछ लोगों ने हफ्तों उसके
साथ दुष्कर्म किया। जब वह बचकर निकली तो 22 लोगों की हत्या कर दी। 11 साल जेल में
रही। रिहा होकर दो बार सांसद बनी। 2001 में फूलन देवी की हत्या हो गई। हत्यारे को
2014 में उम्रकैद दी गई। फूलन ने गुनाह जरूर किया, लेकिन
जिन परिस्थितियों में अपराध हुए, उसके चलते सजा के साथ-साथ,नए सिरे से जिंदगी जीने का मौका मिलना चाहिए था।
>>मनोरंजन ब्यापारी
की कहानी प्रेरक है। गरीब दलित होने के कारण वे पढ़ नहीं
पाए और शोषण झेला। फिर जेल में डाल दिए गए जहां किसी ने पढ़ने के लिए प्रोत्साहित
किया। व्यापारी आज प्रसिद्ध बंगाली लेखक हैं।
जेलों में कई ऐसे
मनोरंजन,
शाहिद, फूलन हो सकते हैं, जो परिस्थितिवश वहां पहुंचे। कहीं इसका कारण झूठे इल्जाम, कहीं बदला तो कहीं अन्याय के खिलाफ गैरकानूनी लड़ाई है।
इनमें कई लोग ऐसे
हैं,
जिन्हें मौका मिले तो समाज में बड़ा योगदान दे सकते हैं, बशर्ते सामाजिक स्तर पर हम उन्हें दूसरा मौका देने हो रहे हैं। जैसे शिमला
में कैदी कैफे चला रहे हैं और केरल,मध्यप्रदेश में कैदी
मास्क बना रहे हैं।
पिछले दिनों यूपी में हमने देखा कि सरकार और प्रशासन इसे खुद कमजोर बना रहे हैं। यदि यूपी में हुई घटनाओं को सामाजिक स्वीकृति देते हैं, न्यायोचित स्वीकृति ठहराते हैं तो देश में जंगलराज फैलने का डर है। इसका त्वरित जवाब जरूर मिलेगा, लेकिन वह शिकार ज्यादा और न्याय कम होगा। आज पुलिसकर्मी मारे जाएंगे, कल कोई अपराधी और परसों ?
कुछ लोग मानते हैं कि विशेष प्रकार के लोग (किसी वर्ग, जाति, धर्म, लिंग, इत्यादि) हिंसा और जुर्म करते हैं। यदि यह धारणा सही है, तो निष्कर्ष यह है कि उस एक व्यक्ति को फांसी देने या एनकाउंटर करने से समस्या हल नहीं होगी। हमें उन सामाजिक और राजनैतिक कारणों को समझना होगा जिनसे लोग जुर्म की ओर जाते हैं। हमें ऐसी न्यायिक प्रक्रिया की मांग करनी चाहिए जिसे हम अपने खिलाफ स्वीकार करने को तैयार हों। यानी, यदि हम खुद कटघरे में हों, जुर्म के आरोपी या अपराधी हों, तो न्यायिक व्यवस्था से हमें क्या उम्मीद होगी? अपना पक्ष रखने के मौके से पहले ही एनकाउंटर? अपराधी करार दिए जाने के बाद मृत्युदंड? या शाहिद, फूलन देवी या मनोरंजन ब्यापारी की तरह सुधार और पुनर्वास का अवसर भी?
हां पर कुछ
घिनोने जुर्म जैसे छोटे -छोटे बच्चो का रेप , वीभत्स
हत्या बहुत बेहरमी के साथ और भी कई जघंन्य अपराध में कठोर से कठोर दंड के पक्ष में
मैं स्वयं हूँ।
क्योकि भारत में ये भी देखा गया है की न्यायिक प्रक्रिया इतनी ढीली है की जघन्य अपराध के अपराधियों को भी सजा मिलने में बहुत देरी हो जाती है और वो बैल में रिहा होकर अपराध करते है पीड़ितों और उनके परिवारों को डरते धमकाते है , और तो और यहाँ तक जेल से बहार आकर चश्मदीद गवाहों को भी मार देते है या गजब कर देते है बहुत से ताज़ा उदाहरण है आज अपने बीच जैसे निर्भया केस में मृतक पीड़िता को इन्साफ मिलने में 7 साल लग गए , जिसको लेकर आज देश में निर्भया कानून बना है।
इसलिए यहाँ यह
बहुत जरुरी है की लोगो के मन में कोर्ट और भारत के कानून के प्रति सम्मान पैदा हो
और ये तब होगा जब हम अपनी न्यायिक प्रक्रिया में थोड़ा बदलाव करे ,
लोगो को नये त्वरित मिले जिससे जनता के मन में कानून के प्रति
सद्भावना और सम्मान पैदा हो।
दोस्तों आज का आर्टिकल आपको कैसा लगा कृपया कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दे। धन्यबाद।।
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