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नार्थ ईस्ट इंडिया की सुंदरता के बारे में सच्ची स्टोरी , प्रकृतिक सुंदरता, संस्कृति और एक वक्या ।

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दोस्तों आज हम आपको नार्थ इंडिया की सुंदरता के बारे में सच्ची स्टोरी बताने जा रहे है जिसे जानकार आप नार्थ इंडिया की संस्कृति , प्रकृतिक सुंदरता को अनुभव कर सकें।

आज भी हमारे भारत में बहुत से क्षेत्र ऐसे है जोकि विकसित नहीं है हर तरफ प्राकृतिक सुंदरता , स्वच्छ वातावरण , साफ आवो हवा है वो है नार्थ इंडिया जैसे क्षेत्र असम ,गुवाहाटी , नागालैंड , मिजोरम आदि।

चूँकि मैं इलेक्ट्रिकल क्षेत्र से सम्बंधित हूँ तो मेरे कलिग (Colleague) को रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन कार्य से गुवाहाटी असम भेजा गया जिस दौरान उन्हें जिस नार्थ इंडिया की प्राकृतिक सुंदरता , संस्कृति और कार्य करने में जो कठिनाइयों का सामना किया उसे इस प्लेटफार्म के माध्यम से बताने की कोशिश की है।  

आज जीवबुद्धि लोग और पढ़ें-लिखे संपादक हमेशा सरकार को कठिनाई वाले क्षेत्रों में विकास कार्य करने की सलाह देते हैं। जहाँ खूबसूरत हरियाली में प्रगति और टेररिस्ट के बीच हमेशा घर्षण होता है और जो लोग प्रोजेक्ट पर डेप्यूट होते हैं, वे हमेशा फिजिकल अटैक, फिरौती, अपहरण, जोखिम भरी जिंदगी की छाया में काम करते हैं। यहाँ कुछ अनुभव शेयर्ड है :

प्राकृतिक की गोद में बसा भारत का नॉर्थ -ईस्ट पार्ट:-

💓भारत के उत्तर पूर्व भाग में (नॉर्थ -ईस्ट पार्ट) , बिहू जैसे प्रसिद्ध त्योहार के अलावा। भारत का सबसे लम्बा ब्रिज (9.1-किमी लंबा पुल) ढोला-सदिया ब्रिज के रूप में भी जाना जाता है।ऑरेंज की खेती, सबसे बड़ी नदी आइसलैंड, रसीला चाय उद्यान, झरने, छिपे हुए गुफाएँ, नेचुरल रुट ब्रिज, मठ,लुप्तप्राय जानवर, साफ-सुथरे गाँव, नाचते हुए झरने, विभिन्न प्रकार के पक्षी, हाथियों, गैंडों, रेशम के जूते, हनी मधुमक्खियों के केंद्रों आदि का भय मुक्त मनमोहक दृश्य।

 

मैंने जो कुछ देखा उससे यह कह सकता हूँ कि पूर्वोत्तर भारत अद्वितीय है और आश्चर्य से भरा हुआ है । लोगों के अपराजेय आतिथ्य, बादल क्लॉउडी परिदृश्य, और पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली।


 यहां लोग सामाजिक ताने-बाने और समृद्ध सांस्कृतिक से वाकिफ नहीं हैं, पूर्वोत्तर भारत के कई सरकारी और निजी वेंडर,संगठन हैं,जो कार्य कर रहे हैं। पर गरीबी उस क्षेत्र के लिए एक अभिशाप है। लोग केवल स्थानीय भाषा को समझते है।

मेरे कलिग (Colleague) के साथ हुए कुछ वाकये :-

1st स्टोरी: -

 युवक ने ओवरहेड इलेक्ट्रिक लाइनें में सर्वेक्षण और डिजाइन में काम करने वाली एजेंसी की स्थापना की।  उन्हें तिनसुकिया सेक्शन(अरुणाचल की बॉर्डर से लगा हुआ जहा से गुवाहाटी 480 कम है ) में एक सर्वेक्षण अनुबंध मिला। एक रात वह तिनसुखिया ट्रेन से गुवाहाटी से लौट रहा था। जल्दबाजी में लेट होने की वजह से वह टिकट नहीं ले पाये थे।  टीटीई ने उसे दीमापुर स्टेशन (नागालैंड)पर उतरने के लिए कहा, रात बहुत हो चुकी थी। यह नागालैंड का एक दस्यु क्षेत्र(बैंडिट एरिया) है। उसने नीचे उतर कर देखा कि वह प्लेटफ़ॉर्म पर एकमात्र यात्री था। वह बहुत डर गया परन्तु जब देखा की कुछ पुलिस वाले वह मजूद थे। रात का समय था भूख भी लग रही थी बाहर निकलना चाहा तो पुलिस ने वही रोक लिया उन्होंने अपने कार्यालय से बाहर नहीं आने की चेतावनी दी  बताया यह क्षेत्र रात के लिए मेहफ़ूज़ नहीं है फिर वह एक महिला पुलिस अधिकारी काफी दयालु थी। उसने नाश्ता पेश किया और उसे चाय भी दी जिससे कुछ राहत मिली।  फिर वह वहां तीन घंटे तक वह हाथ पकड़े बैठा रहा, फिर जब एक ट्रैन गुवाहाटी के लिए आयी उसने टिकट विंडो से टिकट ली और फिर ट्रैन में बैठ गया और वह गुवाहाटी पहुँच गया। 

2nd स्टोरी : -

 इस घटना के बाद उन्होंने एक स्थानीय युवा इलेक्ट्रीशियन को नियुक्त किया जो मदद के लिए स्थानीय क्षेत्र और भाषा की समस्याएं। इस बीच ही , उन्होंने क्षेत्रीय भाषा सीखना शुरू कर दिया। वह नया लड़का सभी समस्याओं से निपटने में सक्षम था। मरियानी स्टेशन ( जिला -जोरहाट , असम ) जोकि  काम करने के लिए सुविधाजनक था तो  शुरुआत वहां से की चूँकि  मैन सिटी  से आने जाने में समय लगता इसलिए हमने वही लॉज में एक कमरा किराए पर लिया। उस क्षेत्र के दो-तीन लोग उनसे मिले। वे मीठी ज़ुबान थी चैट-अप के दौरान, उन्होंने फिर हमारे बारे में जानकारी इकट्ठा की।फिर शाम को लगभग चार-पाँच लोग उसके पास आए। वे शायद माओवादी या मिलिटेंट्स समूह के सदस्य थे, उन्होंने रुपये की मांग की। फिरौती के रूप में एक लाख। हमने उनसे कहा कि वह एक गरीब आदमी है और दैनिक आधार पर काम कर रहा है। और हमने माओवादिओं/मिलिटेंट्स से कहा ओर उन्हें समझाने में कामयाब रहे कि अगले दिन हम अपने कंपनी के ओनर से बात करके आपको अवगत करते है फिर उन्होंने हमें धमकी दी और कही न जाने के लिए कहा। जैसे तैसे हमने अपनी रात काटी  अगले दिन ही सुबह होटल छोड़ दिया और रेलवे स्टेशन पहुंचे व  गुवाहाटी के लिए ट्रेन पकड़ें।

उसके बाद फिर चैन की साँस ली और फिर बहुत दिन बाद काम पर वही जाने तैयार हुआ पर उसके बाद ट्रेन से ही जाते और काम खत्म होने के बाद शाम होने के पहले ही ट्रेन से मेन सिटी लौटता और फिर कभी भी उस क्षेत्र में डेरा नहीं डाला।

भगवान का शुक्र है। हिंदी वाक्यांश "जान बची तो लाखो पाये "

कहने का मतलब बस इतना सा है अभी भी वहां बहुत सा डेवलपमेंट का कार्य बचा हुआ है पर इन माओवादियों /नक्सल एरिया में कोई काम नहीं करना चाहता। सरकार को चाहिए कि वहा ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे , जिससे टूरिज्म और पिछड़े इलाकों में विकास तेज़ी से हो सकें।

इतना सब होने के बाद आज मैं अपने घर पर हु और जब भी ये घटना के बारे में सोचता हु रोंगटे खड़े हो जाते है परन्तु निच्छित ही वो पल मेरी जिंदगी के यादगार पल रहे है जिन्हे  कभी नहीं भुलाया जा सकता है। वो चाय के खेती , बागानों की महक , रेलवे लाइन के काम से रोज 15-20 कम पैदल चलना पड़ता था तो बहुत से प्राकृतिक दृश्य दिखायी देते थे और गैंडे जैसे दुर्लभ जानवर भी वह ऐसे ही दिख जाते है, थोड़ा बैकवर्ड एरिया है क्योकि वह रोजगार नहीं है लोग शिक्षित कम है जिससे ग्रामीण क्षेत्र में काम करने में परेशानी आती है। 

पर सच में एक बार आप जाकर जरूर देखिये असम की खूबसूरती। धन्यबाद।


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