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गुरुपूर्णिमा पर खास - खुशियों पर ध्यान दें , जीवन की खटास खुद ही कम हो जाएगी।

Guru_purnima

गुरुपूर्णिमा पर जाने अंतरराष्ट्रीय जीवन गुरु गौर गोपाल दास जी से।

(देश के जाने -माने आध्यत्मिक और जीवन गुरुओं से जानिए कैसे नकारात्मकता और निराशा को ख़त्म कर पॉजिटिव जिंदगी जी सकते हैं... )

"अगर न्यू नार्मल का मतलब अनुशासन ही है , तो इसे ख़ुशी-ख़ुशी अपनाइये। थोड़ी तकलीफ होगी , लेकिन पछतावे के दर्द से हमेशा अनुशासन का दर्द बेहतर होता है। "

अनलॉक में हमें सबसे जरूरी यह बात ध्यान रखनी है कि जिएंगे तो जीतेंगे। अनलॉक में कुछ छूट मिली है तो कई लोग बेवजह भी बाहर जाने लगे हैं। लेकिन जोखिम अभी खत्म नहीं हुआ है। अभी भी अनुशासन की उतनी ही जरूरत है। हम यह ध्यान रखें कि जितना जरूरी है, जब जरूरी है, तभी बाहर निकलें और जिनको जरूरी वे ही बाहर निकलें। यह अनुशासन बना रहे।

हालांकि कुछ लोगों को मौजूदा रोक-टोक और अनुशासन से कुछ तकलीफ भी होने लगी है। लेकिन फिलहाल कोई विकल्प तो है नहीं, तो इसी अनुशासन के साथ खुशी-खुशी रहना चाहिए।

उदाहरण के लिए स्वस्थ रहने के लिए कोई व्यक्ति जीवन में अनुशासन लाता है, वह एक्सरसाइज करता है, मीठा नहीं खाता और डाइट फॉलो करता है। इस अनुशासन में उसे दर्द होता है,लेकिन यह उसे स्वस्थ रखता है। फिर अगर वह ऐसा नहीं करता

और उसका कॉलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है, कई बीमारियां होने लगती हैं तो दर्द तो इसमें भी होगा और साथ ही पछतावा भी होगा। तो यह हम पर निर्भर करता है कि हम कौन-सा दर्द चुनते हैं। अनुशासन का दर्द या पछतावे का। यह सच है कि लोग अनुशासन में रहकर थक चुके हैं, लेकिन अगर यही न्यू नॉर्मल है, तो इसे स्वीकार कर आगे बढ़ना ही होगा। कोरोना के इस दौर ने मन में बहुत नकारात्मकता भर दी है। कई लोग सोचते हैं कि इस समय हमने जो दर्द और परेशानियां देखी हैं, उनका मन पर लंबे समय तक असर रहेगा।

इसके जवाब में मैं एक किस्सा सुनाता हूं। गर्मी का मौसम था तो हम शिकंजी बना रहे थे। इसके लिए जब पानी में नींबू डाल रहे थे, तभी फोन आ गया। बातों-बातों में हमने आधे गिलास शिकंजी के लिए चार नींबू डाल दिए। उसका स्वाद चखा तो इतनी ज्यादा खटास थी कि किसी बेहोश आदमी को चखा दें तो उसे होश आ जाए। अब नींबू को पानी में से निकाल तो नहीं सकते। लेकिन पानी डाला जा सकता है न। उसमें चार-पांच गिलास पानी डाल देंगे तो उसकी खटास कम होगी और ज्यादा लोग शिकंजी पी पाएंगे।

जिंदगी भी ऐसी होती है। कोरोना ने हमारे जीवन में थोड़ी खटास ला दी है। हम इसे हटा तो नहीं सकते। लेकिन खटास कम तो की जा सकती है। इस समय हम अपनी खुशियों पर ध्यान दें, हमारे पास जो है, उसपर ध्यान दें। यह सोचें कि हमारा परिवार हमारे साथ है, हमारी नौकरी है,काम है , दोस्त हैं।

बच्चों पर भी इन स्थितियों का नकारात्मक असर पड़ रहा है जो कम हो जाएगी। स्कूल-कॉलेज फिलहाल शुरू नहीं होंगे। क्लासेस ऑनलाइन ही चल रही हैं, लेकिन ऑनलाइन में यह तो समझ आता नहीं है कि कौन कितना पढ़ रहा, कितना समझ रहा है। मेरी बहन एक शिक्षक हैं। हाल ही में उनका फोन आया था तो वे बता रही थीं कि कितना मुश्किल होता है ऑनलाइन पढ़ाना। जितनी तैयारी वे सामान्य दिनों में करती थीं, उससे ज्यादा तैयारी ऑनलाइन के लिए करनी पड़ रही है क्योंकि बच्चों को मोटीवेट भी रखना है। उन्हें चुटकुले और कहानियां निकालनी पड़ती हैं, बच्चों का मनोरंजन करते हुए उन्हें पढ़ाना पड़ता है। इसका मतलब है कि टीचर्स को अब ज्यादा मेहनत करनी है। और उनके साथ माता-पिता को भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।

अभी बच्चों की फिजिकल एनर्जी इस्तेमाल नहीं हो रही है अभी मन में डर है कि कहीं कोरोना न हो जाए। ऐसी नकारात्मक भावना से इम्यूनिटी कमजोर होगी। अभी मन स्थिर रखना जरूरी है। डरने और चौकन्ना रहने में अंतर हैं। हमें डरना नहीं है, चौकन्ना रहना है। क्योंकि वे घर पर हैं। और जब यह ऊर्जा इस्तेमाल नहीं होती तो वे बेचैन होने लगते हैं। हमें ऐसा लगता है कि ऐसी स्थिति में बच्चों की रुचियों पर ध्यान देना चाहिए। किसी को संगीत में तो किसी को खेल में रुचि होती है। कुछ दिन पहले मेरे पास एक माता-पिता का फोन आया। उन्होंने बताया कि उनके बच्चे को फुटबॉल में रुचि है। लेकिन फुटबॉल खेलने नहीं जा पा रहा, तो क्या करें। हमने पूछा कि उसका पसंदीदा खिलाड़ी कौन है, उन्होंने कहा क्रिस्टियानो रोनाल्डो। तो हमने सलाह दी कि उसे दिन में एक घंटे रोनाल्डो के पुराने वीडियोज देखने को बोलिए। उसे उसके खेलने का तरीका सीखने को बोलिए।

रोनाल्डो के जितने इंटरव्यूज हैं, वे सुनने को बोलिए। वह देखे कि उसने जिंदगी में क्या-क्या किया, ताकि जब बच्चा बाहर निकले तो उन्हें अपने जीवन में अपना सके। ऐसे ही किसी को संगीत में रुचि है, तो इसकी भी कई ऑनलाइन क्लासेस उपलब्ध हैं। सिर्फ पढ़ाई की बात करते रहने से बच्चे मोटीवेट नहीं होंगे।

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