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'वन नेशन, वन राशन' योजना (ONOR Scheme)-Gov India

'वन नेशन, वन राशन' योजना (ONOR Scheme)-Gov India

प्रवासी मजदूरों को खाद्य सुरक्षा देने की सरकार की योजनाए कितनी कारगर है। 

'वन नेशन, वन राशन' की कामयाबी में अभी कई बाधाये है। 

कोरोना के इस समय में शहरों में काम करने बाले मजदूर, फिर चाहे वे गांव पहुंच गए हों या शहर में ही हो, सभी का खाद्य सुरक्षा का कोई खास ठिकाना नहीं है। मीडिया ने जब उनकी व्यथा उजागर की तो सरकार पर दबाव बना कि उनके लिए कुल करे। कुछ सप्ताह बीतने के बाद, केंद्र सरकार ने घोषणा की कि आगे जाकर ऐसे मजदूरों के लिए 'वन नेशन, वन राशन' योजना लाने जा रही है। वन नेशन, वन राशन (ओएनओआर) में प्रस्तावित है कि कोई भी मति देश के किसी भी जन वितरण प्रणाली दिपो से राशन ले सकता है। इससे उम्मीद की जा रही है कि शहर में बसे मजदूरों को राहत मिलेगी। हालांकि ओएनओआर सुनने में तो बढ़िया कदम लगता है, लेकिन इसकी वास्तविकता कुछ और ही है।

पहली बात, शहर में फंसे कई मजदूरों का राशन कार्ड ही नहीं है , ना शहर में ना गांव में। उन्हें ओएनओआर से क्या फायदा?

दुसरी बात, जिन मजदूरों के कार्ड  है भी उनमें से सब परिवार सहित शहर काम करने नहीं आते। वे राशन कार्ड घर/गांव  रख कर आते हैं, क्योंकि घरवाले उसे गांव में इस्तेमाल करते हैं। जिनके हाथ राशनकार्ड न हो उन्हें ओएनओआर से क्या फायदा? फिर चार लोगों के परिवार से, एक मजदूर शहर जाता है। यदि वह शहर में राशन ले और डीलर केवल उसका चढाने के बजाय चरों का चढ़ा दे, तो ?

जब घरवाले गांव  में खरीदने जायेंगे , तो उन्हें कहा जाएगा कि चारों का कोटा उठा लिया गया है। मजदूर और परिवार शिकायत कहां करेंगे?

तीसरी बात यह है कि तमिलनाडू, हिमाचल प्रदेश, केरल, आंध्र प्रदेश में जन वितरण प्रणाली से राज्य के बजट से लोगों को दाल और तेल भी मिलते हैं। जब झारखंड का मजदूर तमिलनाडु  में खरीदने जाएगा, उसे यह मिलेंगे ? सवाल यह भी है कि कुछ राज्य खाद्य सुरक्षा कानून के दामों पर राशन देते हैं (रू. 2 प्रति किलो गेहू और रू. 3 प्रति किलो चावल) लेकिन कुछ राज्य इसके ऊपर अपनी सब्सिडी देते है। उदहारण के लिए, तमिलनाडु में चावल मुफ्त है, बिहार में रू. 3 प्रति किलो, ओडिशा में रू. 1 प्रति किलो। चेन्नई में काम कर रहे बिहार मजदूर को बिहार की तरह सेंट्रल रेट से दिया जाएगा  या मुफ्त ? फ्री दिया गया तो खर्च कौन उठाएगा , केंद्र या  राज्य ? राज्य सरकारों में समन्वय कैसे बैठाएंगे ।

 

चौथी बात , राजस्थान में गेहू ही देते है। बिहार, झारखण्ड,ओडिशा के मजदूर चावल खाते हैं और उनके राज्यों में जन वितरण प्रणाली में चावल मिलता है। तो क्या इन मजदूरों को राजस्थान में गेहू से काम चालन होगा?

पांचवा मुद्दा राशन की सप्लाई  से जुड़ा है। अभी की प्रणाली में हर राशन दूकान को तय मात्रा में राशन मिलता है। एक राशन दुकान में कितने  राशन  कार्ड और व्यक्ति  जुड़े हुए हैं, उससे सप्लाई निर्धारित होती है।

 यदि दिल्ली की राशन दुकान पर राजस्थान का मजदूर पहुँचता है तो डीलर के पास अपने कार्ड धारकों के लिए राशन जाता है । क्या इसमें उनके साथ ठगी की जा सकती है (डीलर कह सकता है, 'माल ख़त्म हो गया' )?

छठा मुद्दा है  तकनीक का। तकनीकी रूप से यह संभव है , लेकिन इसकी व्यवहारिकता पर सवाल है।  ओएनओआर तकनीकी समाधान में आधार की अहम भूमिका रहेगी । जिन राज्यों ने जन वितरण प्रणाली में आधार को जोड़ा है,वहां लोगों का नुकसान हुआ है। इसलिए संवेदनशील सरकारों ने कोरोना संकट के आते ही, राशन लेते समय आधार की अनिवारियता  हटा दी। अब उस ही नुकसानदेह आधार - बायोमेट्रिक को , लोगों की मदद करने की नाम पर वापस लाया जायेगा।

'वन नेशन, वन राशन' योजना लोगों का दिल बहलाने लिए और असली मुद्दे से ध्यान भटकने के लिए बढ़िया उपाय है। इसकी वास्तविकता ऐसी हो सकती है कि आज जो जन वितरण प्रणाली देशभर में लोगों के लिए जीवनरेखा  बनी हुयी है, कल वह पटरी से न उतर जाए।


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