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गरीब,लावारिस व असहाय लोगों का मसीहा - मोक्ष संस्थापक श्री आशीष ठाकुर । |
छू ले आसमां जमीन
की तलाश ना कर , जी ले जिंदगी ख़ुशी की
तलाश ना कर ,
तकदीर बदल जाएगी
खुद ही मेरे दोस्त , मुस्कुराना सिख ले वजह की
तलाश ना कर।
बस ऐसी ही
सख्सियत का नाम है आशीष ठाकुर जिन्होंने अपना सब कुछ मानव जीवन को समर्पित कर
दिया। जहां कोई निराश्रित,
अनाथ,असहाय मिलता है, बच्चे हो या बुजुर्ग सबका
सहारा बनकर सामने खड़े हो जाते है।
सबसे बड़ी बात इनके अंदर वो जज्बे की है जिसमे कोई विक्षिप्त, बेसहारा,असहाय व कूड़े- कचरे में पड़ी लाशो को देखना भी पसंद नहीं करता उनका सहारा है-आशीष ठाकुर।
जब मंच
में बात बोलने की होती है तो लोग बात तो बड़ी-बड़ी करते है पर जब इन विक्षिप्त,
अपंग, कुंठित, परिवार से
परित्यागे बुजुर्ग, बच्चे, भिक्षु सामने भी खड़ा कर दो तो हौसला पस्त
हो जाता है हिम्मत जबाब दे देती है।
मोक्ष संस्थापक श्रीआशीष ठाकुर का बस एक ही उद्देश्य है निराश्रितों को आश्रय, भूखे निर्धनों को खाना-कपडा, मेडिकल सुविधा इलाज और ज्ञात -अज्ञात शवों को जीवन के आखरी क्षण में धर्मानुसार अंतिम संस्कार। क्योकि आपका मानना है इस संसार में सबको प्यार और सहसम्मान जीने का अधिकार है और उसे उसका हक़ दिलाने के लिए सःह्रदय समर्पण भाव से आप हर पल खड़े है।
मुख्यअंश :
- जानें गरीब,बेसहारा,निराश्रित, अनाथो की सहायता पहुंचने और लावारिश
ज्ञात-अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कार्य से गौरान्वित होती अपनी संस्कारधानी
जबलपुर सहित पूरे मध्यप्रदेश में सफल प्रयास।
- जानें साधारण जीवन से लावारिश ज्ञात-अज्ञात शवों का सद्गति से अंतिम संस्कार करने का सफर।
- जानें कैसे मोक्ष संस्था की शरुआत व् स्थापना हुयी या इसकी स्थापना की जरुरत क्यों पड़ी।
- कोरोना संकट घडी में मानव सेवा- कोरोना संक्रमित शवों व् सस्पेक्ट्स का धर्मानुसार अंतिम संस्कार।
- जानें कैसे बिना किसी सरकारी या प्राइवेट फण्ड ना होने के बाबजूद संस्था बेसहारों, लावरिशो, निराश्रितों और ज्ञात- अज्ञात पार्थिव शरीरों को उनके मंजिल तक पहुंचना तथा सह सम्मान व् प्यार के साथ सेवा भावना।
➤ जानें गरीब, बेसहारा, निराश्रित, अनाथो की सहायता पहुंचने और लावारिश ज्ञात-अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कार्य से गौरान्वित होती अपनी संस्कारधानी जबलपुर सहित पूरे मध्यप्रदेश में सफल प्रयास।
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गरीब, बेसहारा, निराश्रित, अनाथो की सहायता पहुंचने और लावारिश ज्ञात-अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कार्य से गौरान्वित होती संस्कारधानी। |
आज हम ऐसे
व्यक्ति के जीवन से जुड़ी सच्ची कहानी लेकर आये है जिसे सुनकर शायद आपका दिल पसीज
जाये और यदि नहीं पसीजता तो शायद मानवता आपके अंदर नहीं बस्ती पर हर आदमी के अंदर
एक सॉफ्ट कार्नर होता है जिसने एक नन्हा सा दिल धड़कता रहता है शायद वह आज जोरो से
धड़क उठे क्योकि बात ही कुछ ऐसी है जो लोगो का दिल जीत लें।
आज कितने ही लावारिश लाशे सड़क रोड में देखने आमूमन हमे देखने मिल जाती है जिसे हम शायद देखना भी पसंद नहीं करते क्योकि हम इंसानो की प्रवृत्ति ही कुछ ऐसी ही है जिसे अच्छा देखना ही पसंद है, परन्तु अच्छा व्यक्त बुरा व्यक्त देखकर नहीं आता , व्यक्त ही ऐसा समय का पहिया है जो इंसानो को सब कुछ अनुभव करा देता है , रिश्तो की परिभाषाये बदल जाती है कौन बाप, कौन बेटा कौन किसका क्या लगता है। सब दुनिया में व्यर्थ है जब आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है आदमी सोचता है की मेरा लड़का दमाद मुखाग्नि दे ,पिंड दान करे, रिश्तेदारों द्वारा अर्थी को कन्धा दे, अंतिम संस्कार पुरे रीती रिवाजो से हो जाये जिससे आत्मा को शांति प्राप्त हो , जिसके लिए आप दिन रात काम करते रहते है भविष्य उज्जवल बनाते है अपना ही नहीं वरन अपने बच्चों का भी क्योकि आप जो करते है उन्ही के लिए अपना पूरा जीवन दांव पर लगा देते है और जब बच्चे बड़े होते है संस्कारी निकल गए तो किस्मत की बात है नहीं तो अनाथालय ऐसे ही नहीं भरा साहब।
"पूरी
जिंदगी जीत सकते है संस्कार से,
और जीता हुआ भी हार जाता है अहंकार से "
ना जानें कितने
ही लोगो को अभी तक धर्मानुसार अंतिम संस्कार मोक्ष द्वारा किया जा चुका है।
एक आंकड़ा - एम.एल.सी के आंकड़े के अनुसार एक वर्ष में लगभग एवरेज 1800 और पिछले 20 वर्षो से लगातार प्रयासों से 36,000 + पार्थिव शरीरों का रीती रिवाजो से अंतिम संस्कार किया जा चूका है, जो अपने आप में एक बड़ा आंकड़ा है, इतना ही नहीं वर्ष में एक बार हिन्दू रीती रिवाजो वालो को इलाहाबाद में पिंड दान भी करते है।
जबलपुर के आलावा
सतना, रीवा इत्त्यादि और भी जिले में आपके
वॉलेंटिर्स है जिनके माध्यम से सेवाएं जारी है।
जब
मृत्यु होती है तब आपके परिवार वाले तो छोड़ो सरकारी प्रशासन भी हाथ खड़ा कर देता है।जब हमारे अपने आशीष भैया ऐसे
लोगो का सहारा बनते है जिसका कोई नहीं । अभी तक न जाने कितने लावारिश
मृत्य शरीरो को कन्धा दे चुके है , न जाने
कितने लोगो का पुरे रीती रिवाजो से अंतिम संस्कार कर चुके है। बिना किसी
सरकारी मदद के अपने ही खर्चो में ,अपनी प्राइवेट जॉब की पूरी कमाई
इसी में लगा देते है , कुछ अभी भी लोगो में मानवता बची
है जो उनका इस काम में निःस्वार्थ भाव से सहयोग भी कर देते है जिससे लगातार पिछले 20 वर्षो से आप व् आपकी ये संस्था मानव उत्थान व् जन कल्याण का कार्य कर रही है।
कहते है न खुशी में तो सब शामिल हो जाते है पर जो किसी के दुःख में शामिल हुआ वही सच्चा इंसान है।
➤ जानें साधारण जीवनकाल से लावारिश ज्ञात-अज्ञात शवों का सद्गति से अंतिम संस्कार करने का सफर।
आपके पिता पुलिस
में सिपाही थे । आप दो भाई और दो बहन है। , जब आप 12th
में थे तब आपके पिता जी का रिटायरमेंट हो गया। तब पिता जी ने कहा अब
घर (गांव) चलना है क्योकि पिता जी ने बहुत साधारण नौकरी की थी उनकी अंतिम
सैलरी 5400 रू. थी और उन्होंने 45 रू.
से नौकरी शुरू की थी। परिवार के जिम्मेदारी अब आपके ऊपर थी तब आपने पार्ट टाइम
नौकरी करना उचित समझा , सबसे पहले आपने आईडिया कंपनी में काम
किया बात तक़रीबन वर्ष 2000-2001 की थी तभी आपने नेताजी सुभाष
चंद्र बॉस मेडिकल कॉलेज जबलपुर में सिक्योरिटी सुपरवाइजर की नौकरी भी ज्वाइन की तब
आपकी सैलरी 1500 रू. थी।
एक बार की बात है
वर्ष तक़रीबन 2000-2001 जब आप अपनी साइकिल से मेडिकल
नौकरी पर जा रहे थे तो आपने देखा की एक लावारिश शव मेडिकल के सामने डाला हुआ और
बहुत भीड़ लगी हुयी है फिर जब शाम को नौकरी से वापस आ रहे तब वही देखा तो भीड़ तो
नहीं थी पर कुछ कुत्ते शवों को खींच रहे थे उसके चीथड़े निकल कर खा रहे थे ,
उनकी मृत बॉडी में हड्डियों के अलावा कुछ नहीं बचा था, क्योकि 2 दिनों से शव वही पड़ा हुआ था।
फिर मैं साइकिल
उठाकर गया गया मेडिकल चूँकि मैं वही नौकरी करता था तो कुछ लोग मेरे को पहचानते थे
कोई छोटू बोलता था कोई कुछ , फिर में पोस्टमॉर्डन
विभाग में गया वह ये सब बताया की वह एक लावारिश लाश पड़ी है , फिर उन्होंने कहा क्या करना है मैंने कहा कुछ कर दो कुत्ते खा रहे है फिर
वही कुछ लोग जो खाली थे उस व्यक्त, मेरे साथ चले चूँकि ये
रोजाना का काम था उनका इसलिए उन्हें संकोच भी नहीं लगा , तब
वह शव को लेकर आये और जहा लावारिश शवों को पोस्टमार्डम के बाद डाला जाता था ,
तब इलेक्ट्रिक सिस्टम नहीं था शवों को जलाने का तो एक चैम्बर में
डाल दिया जाता था जिससे शव सड़ जाते थे वहां बहुत बदबू आती थी ,इसके मैंने वही एक गढ्ढा करवाया और वहीं उस लावारिश को दफ़न किया, अगरबत्ती लगाया अंतिम संस्कार किया
चूँकि उस समय मैं अपने मैं छोटा था और सामान्य परिवार से था मेरा दिल रो
दिया उस शव को देखकर अब आप इसको जो भी कह लें पर ये मेरे द्वारा पहली लावारिश लाश
थी जिसे कन्धा दिया गया , सहारा दिया गया अंतिम संस्कार किया
गया वर्ष 2000-2001।
आप वर्ष 2002-2003 में हितकारिणी कॉलेज जबलपुर में प्रेसिडेंट बने तब आप लोगो का ग्रुप हुआ करता था जो भी बेसहारा आदमी मिलता उसे खाना कपडा जो भी मेरे पास होता मैं उन्हें दे दिया करता था। और हम लोग उस पंग्ति में आख़री आदमी की सहायता करना चाहते थे जिसका कोई नहीं । एक जूनून सा सवार था , जो लाश लावारिश मिले जिसका कोई नहीं प्रशासन भी हाथ खड़ा करें उसे कन्धा दिया जिसको चलते क़र्ज़ भी बहुत हो गया था मेरे ऊपर , चिता को जलने में लकड़ी लगती है जिसे लेकर लाखो का क़र्ज़ हो गया था पर तब भी किसी ने मुझे उधारी देने से मदत नहीं किया शायद लोगो की दरयादिली ही है।
मेरे दीदी को शादी में सुजुकी बाइक दिए थे जो मेरे पास रह गयी थी जिससे में कॉलेज जाया करता था उसे मेरे जीजा जी ने लेने से माना कर दिया , मैंने उसे भी गिरवी रख दिया क़र्ज़ उतारने के लिए। ऐसे ही चलते चलते जिंदगी का सफर चलता रहा ऊपर वाले ने भी मेरी बहुत मदत की मैंने बहुत सी कंपनियों में भी नौकरी किया जैसे मक्डोनल्ड्स ,साँची, HDFC ,Kodak, L&T आदि कंपनियों में काम किया, वर्तमान में D.L.L. एस्कॉर्ट्स में कलैक्शन मैनेजर हूँ पर कोरोना मंदी के दौर में नौकरी चली गयी । शैक्षणिक योग्यिता – 12th बायो, बी.एस.सी बायो।
➤ जानें कैसे मोक्ष संस्था की शरुआत व् स्थापना हुयी या इसकी स्थापना की जरुरत क्यों पड़ी की।
वर्ष 2007 में मोक्ष को रजिस्टर्ड किया गया जहाँ इसका पूरा नाम "मोक्ष मानव
सेवा एवं जन उत्थान समिति जबलपुर" रजिस्टर्ड है और रजिस्टर्ड
नंबर 04/14/01/00826/07 है , जैसे कही कोई हत्या हो गयी बॉडी 3-4 दिन से वही पड़ी
है ये 2007 की बात है भेड़ाघाट में रहता है दूध वाला उसने बताया भैया वह बहुत बदबू
आ रही है वह कोई जा नहीं पता ये भेड़ाघाट रोड में सड़क के किनारे की घटना थी वह जाकर
देखा तो बॉडी पड़ी थी उसमे कीड़े लगे थे बॉडी सड़ रही थी , और ऐसा
बहुत बार होता है बॉडी बहुत ही दुर्दशा में पड़ी मिलती है जिसे लोग देख भी न पाए।
जब को डेड बॉडी
मिलती है तो सबसे पहले पुलिस को इन्फॉर्म किया जाता है जब नीचे के अधिकारी नहीं
सुनते तब ऊपर भी बात करनी पड़ती है चूँकि पहले कभी इस मामले में फसे नहीं थे और
अपनी सेवाभाव से समाज का एक वर्ग दुर्भावना भी रखता है जिसको लेकर कुछ मामले भी
मेरे ऊपर बने तब कुछ पत्रकार बंधुओ ने कहा की आशीष अब इसे रजिस्टर्ड करा लो। तब
जाकर मैंने मोक्ष संस्था की स्थापना की।
अभी स्थिति
ज्यादा अच्छी तो नहीं पर इतनी अच्छी तो है की हज़ार लाखों न सही पर जो भी सहायता के
लिए आता है या जो सामने दिख जाता है उसकी पूरी सहायता मोक्ष द्वारा की जाती है।
➤ कोरोना संकट घडी में मानव सेवा- कोरोना संक्रमित शवों व् सस्पेक्ट्स का धर्मानुसार अंतिम संस्कार।
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कोरोना संकट में भी धर्मानुसार शवों का अंतिम संस्कार करते हुए - मोक्ष (श्री आशीष ठाकुर ) |
अभी प्रशासन के
द्वारा हमारी 1 टीम को हायर किया गया है उसमे 30 लोग है तथा प्रशासन ने आश्वासन दिया है की 1 महीने
के लिए पूरी मदत की जाएगी। अभी तक लगभग 40 शवों का अंतिम
संस्कार धर्मानुसार किया गया जिसे कोरोना पॉजिटिव व् कोरोना सस्पेक्ट दोनों ही
शामिल है और लावारिश शवों की बात करें तो लगभग 30-35 शवों का
भी अंतिम संस्कार किया गया।
कोरोना में लोगो
के सेवा के लिए भोजन वितरण भी चालू किया है जिसमे प्रतिदिन लगभग 8000 भोजन
के पैकेट्स जरूरतमंद परिवारों को वितरित किये जाते जा रहे है।
सबसे दिलचस्प बात
यहाँ पर यह की लोग खुद हेल्प करवाते है
जैसे आज प्रतिदिन 8000 लोगों को भोजन कराया
जा रहा है जहाँ लोग खुद स्वेक्षा से मदत करते है खाना बनाते है खाना बाटते है
जिससे यह कार्य चल रहा है हमारा बस एक ही लक्ष्य है इस दुनिया में कोई भी बेसहारा ,
असहाय और भूखा न रहे और प्रेम से जो भी कुछ देता है रख लेते है।
लॉकडाउन के दौरान भी मानवता का यह कार्य जारी रहा चाहे जरूरतमंद परिवार को राहत सामग्री हो या पका भोजन देना , बस्तियों में पानी के संकट को दूर करना (पानी के टैंकर पहुंचाकर), नंगे पैर पैदल चलते प्रभासी मजदूरों के दर्द को समझा उन्हें पैरो में पहनने चप्पल-जूते दिए,तन को ढकने कपडे दिए , उनके खाने का प्रबंध कराया इतना ही नहीं बहुत से फंसे प्रभासी मजदूरों को उनके गंतव्य स्थल तक पहुंचाने का प्रबंध भी किया गया (बसों द्वारा )।
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कोरोना संकट काल में मोक्ष द्वारा मानव सेवा एवं जन उत्थान में भोजन वितरण ताकि कोई भूखा न रह सकें |
➤ जानें
कैसे बिना किसी सरकारी या प्राइवेट फण्ड ना होने के बाबजूद संस्था बेसहारों,
लावरिशो, निराश्रितों और ज्ञात- अज्ञात
पार्थिव शरीरों को उनके मंजिल तक पहुंचना तथा सह सम्मान व् प्यार के साथ सेवा
भावना।
मोक्ष को आज तक
कोई अनुदान सरकारी नहीं मिला कोई नेता ने कोई एक पैसा इन गरीबो की सेवा के लिए
नहीं दिया वल्कि फोटो खींचने सब चले आते है हज़ारो - लाखों की भीड़ में मुझे एक नारियल और श्रीफल देकर
सम्मानित कर देते है पर जब उनसे कहो की 1-2 ऐसे
बेसहारा परिवारों की जिम्मेदारी ले तब कोई सामने नहीं आता।
सारे लोग न सही
पर मुट्ठी भर लोग दुनिया में है जिससे जीवन चल रहा है कही किसी बस्ती में पानी की
जरुरत है तो कोई पानी का टैंकर दे गया ,
कोई ने डीज़ल दे दिया जिससे यह कार्य चल रहा है।
इस संसार में
अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग निवास करते है जिसकी जैसे सद्भावना है वो वैसा
दान दे देता है जिससे यहाँ पर खड़े है हमारी
संस्था का अकाउंट रजिस्टर्ड नंबर है।
"किसी से बदला लेने की खुशी दो दिन तक रहती है परन्तु किसी की सेवा करने की खुशी जिंदगी भर रहती है।"
दान का मतलब यह
नहीं है की सिर्फ पैसा आप अपने पुराने कपडे, खिलोने,
घर का बचा खाना,अनुउपयोगी वस्तुयें अथवा जो
आवश्यकता से अधिक हो इत्त्यादि, आपका ये छोटे से छोटा सहयोग भी अभावग्रस्त और जरुरतमंदो के चेहरे की
मुस्कान बन सकता है। हमसे संपर्क करने के
लिए नीचे दिए कॉन्टैक्ट नंबर, फेसबुक पेज या वेबसाइट पर भी
जा सकते है।
Website: https://mokshaindia.org/
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Contact No. : 9300122242
#शासन-प्रशासन से भी निवेदन है इस मतलबी दुनिया में बहुत ही कम ऐसे लोग है जो मानव उत्थान में निःस्वार्थ भाव से कार्यशील है इसलिए इनके इस मानव सेवा के कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें जिससे यह मानव सेवा एवं जन उत्थान संस्था और व्यापक रूप से कार्य करने में सक्षम हो सकें धन्यबाद !!
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Moksh_Manav_Sewa_avm_Jan_Utthan_Samiti |
आशीष ठाकुर की सेवा भावना "वसुधैव कुटुंबकम्" को चरितार्थ करती है। सतयुग ऐसे ही व्यक्तित्व के मजबूत कंधों का सहारा लेकर आविर्भूत होगा।
ReplyDeleteजानकर बहुत अच्छा लगा कि आप लोग इस कार्य में लगे हैं। हमको इसकी जानकारी नहीं थी। हम आगे भी जुड़े रहकर सहायता करना चाहेंगे
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