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गरीब,लावारिस
व असहायों का मसीहा - मोक्ष संस्थापक श्री आशीष ठाकुर । (Part-01)
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आज हम ऐसे ही समाज सुधारक और मानव सेवा एवं जन उत्थान का वीडा उठाये हुए मोक्ष संस्थापक श्री आशीष ठाकुर जी की जुवानी कुछ अनसुनी कहानी सुनने जा रहे है।
आप लोगो से आशा
है 2 मिनिट निकालकर जरूर इसको पढ़ेंगे ;
➢ आप ज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कैसे करते है जबकि उनके परिजन भी ज्ञात रहते है?
ऐसे बहुत से लोग
मिलते है जो अपने परिजनों का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहते उनका कहना होता है
मेरे माँ ने मेरे लिए कुछ नहीं किया , मेरे
बाप ने मेरे लिए कुछ नहीं किया , मेरे भाई ने मेरे लिए कुछ
नहीं किया , मेरी बहन ने मेरे लिए कुछ नहीं किया जिससे
रिश्ते तार तार हो जाते है और लोग रिश्तेदार होते हुए भी लावारिस और वो उनके शवों
को छोड़कर चले जाते है।
वैसे ये काम तो
पुलिस ,मेडिकल विभाग का ही है पर वो ये काम हमे देने लगे , एक
अंतिम संस्कार के लिए पुलिस को 600 रू. मिलते थे जो वो
मेडिकल कर्मियों को देना होता था पर जब घटना स्थल पर पुलिस आरक्षक की ड्यूटी लगती थी तो वो यह कह
देता, भैया मैं कहा से दू ! बस परोपकार और दिल की आवाज़ सुनकर और संघर्ष करते करते आज यहाँ तक आ गए।
➢ आप
लावारिस पार्थिव शरीर के अंतिम यात्रा को सफल बनाने और जन उत्थान कल्याण में कैसे
लिप्त होते चले गए और लोग इस कार्य में आपसे कैसे जुड़ते चले गए ?
आज से 7-8
वर्ष पहले मैंने शिक्षा मंदिर शुरू किया जिसमे बाजनामठ मंदिर के
सामने जो अगरबत्ती , प्रसाद के दुकानदार उनके बच्चे और जो भी असहाय है उन्हें पढ़ाना शुरू किया। आज सब
बच्चे बड़े हो गए है और अपना अपना बिज़नेस करने लगे है जो आज मुझसे इस कार्य मैं भी
जुड़े है।
लावारिश शवों के लिए गाइडलाइन तो बहुत है पर उन्हें फॉलो कोई नहीं करना चाहता इसलिए इस सामाजिक समस्या का बीड़ा हमने उठा लिया। इतने शव हम यहाँ जबलपुर में प्रशासन की निगरानी में दफना चुके है की जगह कम पड़ गयी। अंतिम संस्कार के लिए जमीन अलॉटमेंट को लेकर हमने जिला प्रशासन को कई बार अर्जी दी, तो प्रशासन द्वारा एक जमीन तो अलॉट हुई पर वो भी राजनीती की बलि चढ़ गयी। अधिकांश सामाजिक लोग चाहते तो है कि लोगो का अंतिम संस्कार धर्मानुसार हो पर जब बात उनके गली मुहल्ले की आती है तो वे विरोध प्रदर्शन करने लगते है क्योकि वो शमशानघाट अपने घरो के आस पास नहीं चाहते, जिससे आज तक लावारिश शवों को जगह नहीं मिली।
बहुत से लावारिश
लोग है जिनकी माँ बाप मर गयी बच्चे अनाथ हो गए वो दिन को मजदूरी करते और शाम को
मेरे साथ रहते जो भी आवश्यकतायें होती में पूरा करता ,
क्योकि उनके लिए ये मैटर नहीं करता की उनके पास खुद की छत है या
नहीं आवश्यकतायें ही बहुत है। मेरी टीम मैं आज 30-40 महिलाये
है जो शिक्षक है और भी अच्छे पद में है जो बिना किसी प्रलोभन बस अपितु
निःस्वार्थ भाव से सच्चे दिल से कार्य में लगी है। इसी तरह 30 -40 लड़के भी है जो किसी न किसी जॉब में है जैसे कोई एम्बुलेंस चालता है कोई
टैक्सी इसी तरह के बहुत सारे लड़के आज मेरे साथ जुड़े हुए है जो निःस्वार्थ भाव इस
कार्य में सहयोग देते है क्योकि पहले जब एक दिन में एक साथ 6-7 बॉडी आ जाती थी अंतिम संस्कार के लिये तो सच मानो आप तबियत ही जवाब दे
देती थी की कैसे करेंगे पर ऊपर वाले ने साथ दिया क्योकि कहते है ना "जिसका
कोई नहीं खुदा तो है यारों " तो बस चलते चलते यहाँ तक आ गये।
उसके बाद जब मैं
जॉब में आया तो बहुत सारे ऐसे भी लड़के है जिसे मैंने जॉब में लगाया जिसे कई
कंप्यूटर इंजीनियर, ग्रजुएट भी है जो कुछ
ऑनलाइन या अल्टरनेट मदद देते रहते है।
➢ आपने अभी तक
कितने लोगो का अंतिम संस्कार कर चुके है ?
आंकड़ा तो सही बता
नहीं पाऊंगा परन्तु एम.एल.सी के आंकड़े के अनुसार वर्ष में 1600-2000 ज्ञात,
अज्ञात, लावारिश , असहाय
पार्थिव शरीर/ शवों का अंतिम संस्कार सह-सम्मान के साथ कर देते है क्योकि "प्रत्येक
व्यक्ति को उसकी अंतिम यात्रा में सहसम्मान इस दुनिया से विदा होने का अधिकार है।
"
कुछ ऐसे भी
परिवार होते है जो आर्थिक रूप से कमजोर है और अपने परिवार के सदस्य के लिए लकड़ी भी
इक्कठा नहीं कर पाते उनके लिए लकड़ी, क्रियाकर्म,अंत्येष्टि आदि के लिए व्यवस्था भी कर देते है।
और इस हिसाब से
अगर एवरेज 1800 प्रत्येक वर्ष पकडे तो 2000 से 2020 तक करीब-करीब 36,000 +
पार्थिव शरीर/शव होते है जो खुद में एक बहुत बड़ा आंकड़ा है। बस मैं ये सब
नि:स्वार्थ भाव से करता चला गया और पता भी नहीं चला कब कितने शवों को कंधे दे दिए
क्योकि सबके जीवन में ये लाइन तो कॉमन है " बुरा व्यक्त कभी बताकर नहीं
आता , मगर सिखाकर और समझाकर बहुत कुछ जाता है
!!" इसलिए सेवाभाव से बड़ा कोई धर्म नहीं है इस
दुनिया में।
➢ हाल ही का कोई किस्सा बताये जिससे हम व् हमारे
समाज के लोग समझ सके रिश्ते की परिभाषा।
गोरखपुर के बहु
प्रतिष्ठित साडी भण्डार की दुकान जिस ज़मीन में बनी है वो जमीन मालिक शहर में भीख
मांगता था और एक दिन की बात है वह आदमी भीख़ मांगते-मांगते मर गया जैसे ही हमलोगो को पता
चला की रेलवे ट्रैक के पास लावारिश लाश पड़ी है जब हम वहां पहुंचे और उस मृतक के परिजनों का पता
लगाया तो पता चला उनके बेटी-दमाद तो यही रहते है और गोरखपुर के बहु-प्रतिष्ठित
साडी भण्डार का संचालन करते है फिर हमने उन्हें भी वही घटना स्थल में बुलाया । मृतक पिता के शरीर को देखकर कुछ देर तो बेटी ने रोया पर जब हमने उन्हें शव ले जाने
बोला तो उन्होंने कहा मेरे पिता ने मेरे लिए कुछ नहीं किया मैं उनका अंतिम संस्कार
नहीं करुँगी आपलोगो को जो सही लगे आप स्वयं करें।
तब हमने कहा अंतिम-संस्कार न सही पर अंतिम व्यक्त में खड़े तो हो जाइये तब दूसरे दिन मेडिकल पोस्टमार्डम विभाग में उनलोगो के साथ उनके रिश्तेदार भी लम्बी-लम्बी गाड़ियों से आये पर सबने कह दिया आपको जैसा करना करें हम कुछ नहीं कर सकते।
कहने का मतलब बस इतना सा है की यदि वो लोग, मृतक
के अंतिम समय में लकड़ी या मृत शरीर को अग्नि भी दे देते तो उस बेचारे बृद्ध मृतक
की आत्मा को शांति मिल जातीं।
इसलिए साधु संत भी कहते है 'जीवन नश्वर है आप क्या लेके आये थे और क्या लेके जाओगे , इस जीवन को मानव सेवा में लगा क्योकि इससे बड़ी सेवा और कोई नहीं' 'ये रिश्ते मोह माया है, समय में कोई काम नहीं आता।'
➢ कुछ लोग लाश का सौदा करने से भी परहेज करते और सक्षम व्यक्ति भी अवसर का लाभ उठाना चाहता है ।
अभी कुछ दिन पहले पता चला कुछ लोग तिलवारा पास लाश
लेकर बैठे अंतिम संस्कार के लिए पैसे
इकठ्ठे कर रहे है तब हमने लाश को जलाने के लिये लकड़ी का प्रबंध करा दिया फिर रात
में पता चला वो लोग अभी भी बैठें तब मैंने वहां जाकर उनको बहुत हड़काया और मृतक का अंतिम संस्कार कराया।
मैंने अपने परिवार की
संवेदनाओ को छोड़कर लोगो के संवेदनाओं जीवन
लगा दिया है रोज सुबह होती है रोज शाम होती है और हर दिन कुछ नया कार्य में लग
जाते हैं।
कुछ सक्षम आदमी
ऐसे भी होते है जो अवसर का फायदा उठाना नहीं छोड़ते जैसे मृतक के लकड़ी के पैसे के
लिए इंतज़ाम हमने किये ,अंतिम संस्कार हमने कराया
और जब उनके वापस जाने के लिए वाहन इंतज़ाम में थोड़ी देर हुयी तो खुद ही गाड़ी बुक
करके वापस चले जाते है।
🔁धर्मानुसार आप हिन्दुओ में खारी विसर्जन कराते हैं और साल में एक बार इलाहाबाद जाकर सबका पिण्डदान भी करते हैं।
"कहने और लिखने के लिए तो बहुत कुछ है आपके बारें में जिसे शायद में अपने इस छोटे से ब्लॉग में कवर न कर सकूँ पर आपकी मानव सेवा के प्रति महानता को Fight इंडिया प्रणाम करता है।"
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