विदेशी कंपनियों
को कानून और टैक्स के दायरे से बाहर रहने की सहूलियत से भारतीय उद्योग दौड़ से बाहर
हो रहे है।
भारत में
रजिस्टर्ड अखबार को अनेक जटिल नियमो का पालन करना होता है। दूसरी तरफ डिजिटल कम्पनिया भारत से सालाना 20 लाख करोड़ से ज्यादा का कारोबार
करने के बावजूद यहाँ के कानून और टैक्स के दायरे
से तक बाहर है।
पांच दशक पहले एक
गाना बहुत मशहूर हुआ था। उसमें राज कपूर
का जूता जापनी और टोपी रुसी थी, फिर भी हीरो का दिल
हिंदुस्तानी था। व्यक्त बदल गया और
करोड़ों हिन्दुस्तानियों के दिलों पर
डिजिटल ने कब्ज़ा कर लिया और विदेशी डिजिटल कंपनियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था
को टोपी पहनाना शुरू कर दिया। टोपी पहनाने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों ने भारत के
संचार तंत्र पर और ई -कॉमर्स कपनियों ने 130 करोड़ लोगों के
बाजार पर कब्ज़ा कर लिया। अब लॉकडाउन के
संकट का फायदा उठाकर अमेजन प्राइम और नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफार्म मनोरंजन के
2 बिलियन डॉलर के बाजार पर कब्ज़ा की जुगत भिड़ा रहे हैं। OTT यानी 'ओवर
द टॉप ' की कंपनिया मनोरंजन के कार्यक्रम बनाने और उसके
डिजिटल प्रसारण के धंधे में पिछले कई सालो
से लगी हुयी है। पिछले कई महीनो से मॉल और मल्टीप्लेक्स बंद है तो ओटीटी पर
फिल्मों की रिलीज शुरू होने लगी है। फिल्मों का सबसे बड़ा वैश्विक बाजार भारत में
है। इससे लाखो लोगो को रोजगार के साथ सरकारों को टैक्स की बड़ी आमदनी होती है। फिल्में समाज को प्रभावित करने के साथ बच्चों
को बेहतर नागरिक बनाने में मददगार होती है।
इसी बजह से फिल्म
में अश्लीलता, हिंसा, शराब,
ड्रग्स , पोर्न आदि को रोकने के लिए सेंसर
बोर्ड की सख्त व्यवस्था बनाई गई है। पिछले कुछ महीने से ओटीटी प्लेटफार्म में
हसमुख और पाताललोक जैसे हिंसक और अश्लील
कार्यक्रमों को बड़ों के साथ बच्चे भी मजे लेकर देख रहे है। रोटी-कपड़ा और मकान के
बजाय भारत में बच्चों के लिये भी मोबाइल जरुरी बना दिया गया है। मोबाइल के माध्यम से डिजिटल कंपनियों का पूरा
कारोबार चल रहा है। लॉकडाउन के संकट में लोगों को रोजगार के बजाय कॉमर्स से शराब
की होम डिलीवरी दी जा रही है। 130 करोड़ की आबादी वाले देश में डिमांड और सप्लाई
लोकल है, लेकिन डिजिटल बाजार में विदेशी कंपनियों बोकल है।
गांव ,कस्बो और जिलों में पुरानी तरह के हजारों सिनेमा हाल बंद होकर मैरिज हॉल
और मार्केटिंग कॉम्पलेक्स में तब्दील हो गए। अब ओटीटी की डिजिटल आंधी में जब
मल्टीप्लेक्स भी बंदी मुहाने पर है,
तो उसे कौन रोक सकता है? बोस्टन कंसल्टेंसी की
रिपोर्ट के अनुसार अगले 3 सालों में अटोटी कंपनियों का भारत में पांच
मिलियन डॉलर का बाजार हो जाएगा। टेक्नोलॉजी
और विदेशी पूंजी को बड़ी ताकत से लैस ये कंपनियां बाजार में अपना एकाधिकार
स्थापित करने में सफल हो रही है। विदेशी कंपनियों को कानून और टैक्स दायरे से बाहर
रहने की सहूलियत मिलने से भारतीय उद्योग
दौड़ से बाहर हो रहे हैं। पिछले तीन महीने में आपदा प्रबंधन कानून (डीएमर) के तहत
श्रम , किराया और वेतन भत्ते के नियमों में बदलाव हो गए।
ओटीटी कंपनियों के लिए कुछ महीने पहले एक
दिन संस्था ने स्वैच्छिक कोड ऑफ कंडक्ट बनाया , पर अधिकांश
कंपनिया किसी भी निगम के दायरे में नहीं आना चाहती है। सरकार यदि ओटीटी
कंपनियों पर सेंसर बोर्ड के नियम और टैक्स
व्यवस्था लागू करने में विफल हो रही है तो फिर परंपरागत सिनेमा कारोबारियों को भी
सेंसर बोर्ड और टैक्स नियमों की जकड़न से मुक्ति क्यों नहीं मिलना चाहिए ?
लोकतंत्र का
चौथा स्तंभ मीडिया
भी लॉकडाउन के कठिन दौर की वजह से अनेक
संकटो का शिकार हो गया है। ऑस्ट्रेलिया के प्रतिस्पर्धा आयोग ने संकट के मूल कारण
को पहले से पहचान लिया था। अखबारों की न्यूज़ से विदेशी डिजिटल कंपनियों और सोशल
मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बड़ी आमदनी होती है। आयोग ने सोशल मीडिया कंपनियों से कहा है कि न्यूज से हो ही आमदनी को
ऑस्ट्रेलियाई अखबारों के साथ शेयर करना होगा। भारत में अनेक भाषाओं में प्रकाशित
होने वाले एक लाख से ज्यादा अखबार और पत्रिकाओं
से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। नियमों के अनुसार मीडिया के कारोबार में
विदेशी कम्पनिया सीधे तौर नहीं आ सकती।
भारत में रजिस्टर्ड अखबार व टीवी मोडिया को जटिल नियमों का पालन
करना होता है। दूसरी तरफ डिजिटल कंपनियां भारत से सालाना 20 लाख करोड़ से ज्यादा का कारोबार करने के
बावजूद यहाँ के कानून व टैक्स के दायरे से अभी तक बाहर है।
आज़ादी के बाद जब
संविधान बना, तब न तो मोबाइल था और न ही
इंटरनेट। संविधान की सातवीं अनुसूची के
अनुसार डिजिटल जैसे नए मामलों पर केंद्र
सरकार को कानून बनाने और कार्यवाही करने का अधिकार मिला है। संघीय व्यवस्था में
राज्यों के पास कानून और व्यवस्था का अधिकार होने के बावजूद , उन्हें विदेशी डिजिटल कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही करने का अधिकार
की शक्ति नहीं है। डिजिटल इंडिया में आत्मनिर्भर भारत को सफल बनाने में अब संसद
, सरकार , अदालत और कैग को बड़ी भूमिका निभानी होगी।
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