प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी तालाबंदी के बारे में राष्ट्र के नाम सन्देश देंगे ,टीवी चैनलों पर ऐसी सूचनाओं ने लोगों के दिलों में जबरदस्त उत्सुकता
उत्पन्न कर दी थी। प्रधानमंत्री ने जैसे अपने पहले संदेशों में अत्यंत प्रेरक
घोषणाएं की थीं, उसके बजाय इस संदेश में उन्होंने ऐसा संकेत
दे दिया, जिससे उत्सुकता पहले से भी ज्यादा बढ़ गईं।
उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अगले दिन 20
लाख करोड़ रु. के पैकेज की जानकारी देंगी, जो तालाबंदी से
पैदा हुई मुसीबतों से दो-दो हाथ कर सकेगा। लोग आशा कर रहे थे कि हमारे वाकपटु
प्रधानमंत्री अपने संदेश में तालाबंदी से पैदा हुई बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी और मानसिक उदासीनता से मुक्ति का कोई
रास्ता बताएंगे। अपने गांवों की तरफ भागते हुए करोड़ों मजदूरों की लोमहर्षक
दुर्दशा पर भी कुछ ऐसी बात कहेंगे कि या तो वह भगदड़ थम जाए या पीड़ितों और उन
पीड़ितों को टीवी चैनलों पर देखकर मर्माहत हुए लोगों के घावों पर कुछ मरहम लगे,
लेकिन फिर वे यहीं आशा वित्त मंत्री से करने लगे।
वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में तीन लाख करोड़ रु. लघुतर, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए घोषित किए यानी उन्हें दिया कुछ नहीं। उन्हें कर्ज के तौर पर देने की घोषणा की। यह कर्ज भी उन्हें बैंक देंगे। बैंकों को गारंटी सरकार देगी। इस कर्ज पर उन्हें कुछ भी गिरवी नहीं रखना पड़ेगा। यह चार वर्ष के लिए दिया जाएगा। पहले वर्ष में किस्तें नहीं ली जाएंगी। इस पैसे से उद्योग-धंधों में लगे कर्मचारियों को नियमित वेतन दिया जा सकेगा और बंद कारखाने चलवाए जाएंगे। इस तीन लाख करोड़ रु. की राहत से 45 लाख उद्योगों में जान पड़ जाएगी और लगभग 12 करोड़ लोगों के रोजगार की रक्षा हो जाएगी। इसी तरह की कई अन्य सहूलियतों की घोषणाएं भी की गई। लघुतर उद्योग की सीमा एक करोड़ से पांच करोड़, लघु उद्योग की 10 से 50 करोड़ और मध्यम उद्योग की 20 से 100 करोड़ कर दी गई। इसी तरह से भविष्य निधि, आयकर, बिजली उत्पादन, भवन निर्माण आदि में तरह-तरह की छोटी-मोटी छूट दी गई हैं। इनमें व्यवसायियों और कर्मचारियों को इस संकट के समय राहत जरूर मिलेगी, लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि क्या यह सब मिलाकर वास्तव में 20 लाख करोड़ रु. की राहत है?
हो सकता है कि
कुछ और राहतों की घोषणाएं भी धीरे-धीरे होती रहें, लेकिन
कई अर्थशास्त्रियों ने आंकड़े देकर बताया है कि वित्त मंत्री ने जो घोषणाएं की है ,
वे 5-6 लाख करोड़ रु. से ज्यादा की नहीं हैं।
सरकार ने तालाबंदी के शुरू में 80 करोड़ लोगों को जो अनाज
वगैरह बाटा था और और आयकरदाताओं को जो पैसा वापस लौटाया था तथा कुछ अन्य राहत
कार्य किए थे, उनकी सबकी कुल राशि भी इस 20 लाख करोड़ में जोड़ ली गई है। सरकार की इस चतुराई के कारण 5-6 लाख करोड़ की राशि 20 लाख करोड़ की बताई जा रही है।
छोटे व्यापार
उधोगो को राहत देने की कोशिश बहुत सराहनीय है , क्योंकि
इससे करोड़ों कर्मचारियों को सुरक्षा मिलेगी और उनके जरिये बाजार में मांग बढ़ेगी,
लेकिन अभी बड़ी समस्या तो यह है कि मजदूरों के बिना ये उद्योगधंधे
चलेंगे कैसे? श्रमिक कानूनों में राज्य सरकारें जो बदलाव कर
रही हैं, उनके कारण जो मजदूर काम पर लौटना चाहेंगे, वे भी हतोत्साहित होंगे।
देश के ग्रामीण
और गरीब लोगों का शोषण करके हम कैसे आत्मनिर्भर भारत बनाने में लगे हैं?अभी लाखों-करोड़ों प्रवासी मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर अपने गांवों की
तरफ भाग रहे हैं, उन्हें और अपनी सड़ती हुई फसलों से निराश
हुए किसानों की भी भारत सरकार और राज्य सरकारें कुछ सुधि लेंगी या नहीं? उन्हें सरकारें तत्काल राहत देगी या नहीं?
ब्रिटेन,
अमेरिका और कनाडा में मेरे जुड़े हुए कुछ सहपाठियों ने बताया कि उनकी
सरकारें बेरोजगार लोगों को घर बैठे भत्ता दे रही हैं और लंदन में गैर सरकारी
कर्मचारियों को भी उनका 80 प्रतिशत वेतन सरकार दे रही है।
भारत में हर बरोजगार परिवार को सरकार कम से कम 250-300 रु.
रोज तो दें, ताकि परिवार के 5-6 लोग
अपना पेट भर सकें। यह ठीक है कि कांग्रेस राज में मनरेगा में भ्रष्टाचार जमकर हुआ
है, लेकिन क्या अभी कोरोना के दौरान भी भ्रष्टाचार नहीं हो रहा
है? इस समय जरूरी है कि मनरेगा को मोटी राशि दी जाए और
मजदूरों की मजदूरी भी बढ़ाई जाए। सरकार ने पंजीकृत गरीबों को अनाज बांटने का जो
सराहनीय काम शुरू किया था, उसे अगले तीन-चार माह तक वह जारी
क्यों न रखें? कोरोना के इस संकट से सबक लेकर हमारी सरकारें
अन्न खेती, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान दें,
यह जरूरी है।
गरीब-मजदूरों की सुध ली लेकिन अमल आसान नहीं
एक दिन पहले उद्योग जगत खासकर लघु, छोटे और मंझोले उद्योगों के लिए सरकार ने कई सुविधाएं दीं। इसका संदेश गया सरकार की प्राथमिकता में गरीब, सीमांत किसान, मजदूर और रेहड़ी-पटरी वाले नहीं हैं। लिहाजा, आज की घोषणा में वित्त मंत्री ने सबसे पहले प्रवासी मजदूरों और सीमांत किसानों को राहत, लोन और राशन की मदद की घोषणा की। आज की कई घोषणाएं अमल में लाना फिलहाल आसान नहीं है, जबकि कई ऐसी हैं, जिनसे कुछ उद्योगों के हित टकराने वाले हैं। पूरे देश में हर मजदूर को न्यूनतम वेतन का ऐलान सबसे बड़ा टकराव का कारण बनेगा। उसी तरह सभी मजदूरों को नियुक्ति-पत्र देने की घोषणा भी अमल में लाना संभव नहीं है।
जहां एक ओर राज्य सरकारें श्रम कानून में बदलाव कर उद्यमियों के हित में मजदूरों के काम की अवधि बढ़ा रही हैं, वहीं केंद्र की योजना इन मजदूरों को नियुक्ति-पत्र दिलवाने और शहरी गरीबों के लिए मकान बनवाकर किराए पर देने की है। उद्यमियों से भी कहा जाएगा कि वे भी अपनी खाली जमीन पर ऐसे मकान बनवाकर इन मजदूरों को सस्ती दर पर किराए पर दें। कहना न होगा कि मकान बनवाने पर आने वाले कुल खर्च के ब्याज की तुलना में किराया काफी कम होता है, लिहाजा सरकार ही यह बीड़ा उठा सकती है, जिसके पूरे होने की संभावना कम लगती है। साथ ही बिना राशन कार्ड वाले मजदूरों व गरीबों को अगले दो माह तक पांच किलो गेहूं या चावल और एक किलो चना दिया जाएगा। एक नेशन, एक राशन कार्ड स्कीम से एक ही राशन कार्ड पर पूरे देश में कहीं से भी राशन लिया जा सकेगा। सरकार ने वित्त आज माना कि कुल आठ करोड़ प्रवासी मजदूर हैं, जिनको संगठित क्षेत्रों के मजदूरों जैसे लाभ नहीं मिल पाते, लेकिन ऐसा कोई रोडमैप सरकार की घोषणा में नहीं था ,जिससे यह सुनिश्चित हो कि दिहाड़ी मजदूरों को बीमा, भविष्य निधि या विधिसम्मत सेवा शर्तों में शामिल किया जा सकेगा। केवल 30 फीसदी मजदूर ही संगठित क्षेत्र में आते हैं, जबकि अन्य 70 फीसदी को इसमें लाने का मतलब उद्योगों में उत्पादन लागत बढ़ाना होगी। क्या उद्योग इसे स्वीकार करेंगे? यह तभी संभव हो सकेगा जब सरकार योगदान दे। 50 लाख रेहड़ी-पटरी वालों के लिए भी 10,000 रुपए लोन की व्यवस्था की गई है, लेकिन प्रश्न यह है कि उनकी पहचान करना मुश्किल लगता है।
मुझे खुशी है कि
वित्त मंत्री ने अपनी दूसरी पत्रकार वाता में घोषणा की है कि 8 करोड़ बिना राशन कार्डवाले प्रवासी मजदूरों को अगले दो माह तक पर्याप्त
खाद्य सामग्री दी जाएगी। 67 करोड़ लोगों को ऐसा राशन कार्ड
दिया जाएगा, जो देश में सर्वत्र चलेगा। प्रवासी मजदूरों के
लिए रियायती किराए के मकान भी तैयार किए जाएंगे।
(मजदूरों
के लिए क्या कुछ जानने के लिए क्लीक करे)
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