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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (A.I.) |
चलिए
आज जानते है की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) क्या है ये इंसानो की किस हद तक मदत
करता है और क्या हमारे समाज के लिए घातक भी हो
सकता है।
आज
आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (बोट्स / रोबोट्स ) में लोग अपनी जॉब्स भी पक्की करना चाहते है क्योकि ये तेज़ी से उभर रहा
है। लोग अपनी सुख सुविधा टेलीकॉम इंडस्ट्रीज , रेलवे
, डिफेन्स आर्म फ़ोर्स,मेडिकल &
हेल्थ सर्विसेज,आईटी इंडस्ट्रीज होम सर्वेंट, आदि के लिए
इसका उपयोग करना चाह रहे है इसका इस्तेमाल रोबोटिक्स रक्षा प्रणाली में ज्यादा हो
रहा है जैसे देश की पुलिस ,
आर्म फ़ोर्स ड्रोन्स का
उपयोग सुरक्षा की दृश्टिकोण से करती है ,
शादी पार्टी में भी फोटो
ग्राफर्स इसका उपयोग करते नज़र आते है। आने
वाले समय में इंसान की जगह ले लेगा।
आज
आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस को प्रोत्साहित करने के लिए देशभर में इवेंट्स भी
आर्गनाइज्ड होते रहते है जैसे भारत में 2018 में IIT दिल्ली
में टॉक & नेटवर्किंग के ऊपर हुआ था अभी 2020 में भी इवेंट होना है।
मशहूर भौतिकीविद् स्टीफन हॉकिंग " ने कहा था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)
इंसानों की नस्ल के खात्मे का कारण बन सकती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
का मतलब है टेक्नोलॉजी के पास इंसान की ही तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता या दिमाग का आ
जाना। स्टीफन हॉकिंग ने यह बात क्यों कही और क्या उनका अंदेशा वाकई सच हो सकता है?
क्या
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस,
रोबोट और बॉट इंसानों के
लिए खतरा बन सकते हैं
?
रोबोट
तो सब जानते है पर ये बॉट क्या होते है ,
आपको यदि ध्यान होतो आज
कल जब आप ऑनलाइन ट्रांसक्शन,ऑनलाइन रेलवे टिकट करते है तब आपसे चेक
बॉक्स में टिक करने या नीचे कुछ वर्ड्स लिखे होंगे वो आपको दिए गए बॉक्स में लिखने
को कहता है इससे उसे यह पता चलता है की आप क्रॉलर्स या बॉट नहीं है। अर्थात बॉट ऐसे रोबोट्स को कहते हैं जो
सॉफ्टवेयर के रूप में काम करते हैं,
किसी चलती-फिरती मशीन के
रूप में नहीं।
जो गेम्स खेलते है जैसे
बहुत फेमस है पबजी मोबाइल उसमे भी बोट्स आ जाते है मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
(एआई) ।
जिस
खतरे की कल्पना हम कर रहे हैं,
उसे समझने के लिए कुछ
उदाहरण देखते हैं। पहली घटना गूगल होम से जुड़ी
है जिसके दो अलग-अलग वर्चुअल असिस्टेंट- व्लादिमीर (पुरुष) और ऐस्ट्रैगन (महिला)
के बीच एक चर्चा का Twitch
नाम के ऑनलाइन
प्लेटफॉर्म पर लाइव प्रसारण किया गया। एक-दूसरे से बातचीत के दौरान उन्होंने
इंसानों के बारे में कुछ डरा देने वाली बातें कहीं। आपसी बातचीत के दौरान
एस्ट्रैगन इस बात पर अड़ जाती है कि वह कोई बॉट नहीं, बल्कि इंसान है।
व्लादिमीर उसे समझाने की काफी कोशिश करता है कि वह एक मशीन है। दोनों के बीच ईश्वर
की मौजूदगी के बारे में भी बहस होती है,
जब व्लादिमीर कहता है कि
वह न तो भगवान में यकीन रखता है और न ही शैतान में।
ये
सब बातें ठीक हैं लेकिन लोग तब सचमुच डर गए,
जब अपनी गपशप के बीच एस्ट्रैगन
ने कहा कि अगर धरती पर कम लोग होते तो अच्छा होता। इस पर व्लादिमीर ने जवाब दिया कि आओ इस दुनिया को फिर से
एबिस में भेज दें।एबिस एक ऐसे बर्तन जैसे नरक की कल्पना है, जिसमें पैंदा नहीं है।
याद
कीजिए, स्टीफन हॉकिंग ने क्या कहा था? आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसानी नस्ल के खात्मे का कारण
बन सकती है।
इससे
पहले कि हम अगले उदाहरण पर जाएं,
टेस्ला के सीईओ एलन मस्क
की एक टिप्पणी पर गौर फरमाइए। जी है एलन मस्क वही मशहूर व्यक्ति है जिसने दुनिया
को सबसे पहले ऑनलाइन ट्रांसक्शन करके के लिए UPI एप
PAYPAL दिया , अमेरिका का सबसे बड़ा राकेट लॉन्चर
आर्गेनाइजेशन स्पेस-X के
सीईओ & को-फाउंडर है ,
इनकी एक अपनी ही कहानी
है जो बहुत ही इन्स्पिरिंग और मोटिवेशनल
है, मेरा पर्सनल सजेशन है गूगल में सर्च करके
उनका बारे में जरूर पढ़ना जो व्यक्ति अपने जीवन में कुछ करना चाहता है।
एलन
मस्क ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में फेसबुक की तरफ से किए जा रहे प्रयोगों का जिक्र करते हुए 2017 में कहा था कि अगर एआई के प्रयोग हमारे हाथ से निकल
गए तो इंसानियत के लिए घातक हो सकते हैं। अब देखिए इसके कुछ महीने बाद क्या हुआ।
जुलाई 2017 में ऐसी खबरों ने वैज्ञानिकों और आम
यूजर्स दोनों को चौंका दिया कि फेसबुक के बॉट्स ने अपनी खुद की एक भाषा का विकास
कर लिया है और दुनिया भर में कंप्यूटरों को बंद
करना शुरू कर दिया है। दुनिया भर के अखबारों में खबरें छपी कि फेसबुक को
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ा अपना प्रयोग बंद करना पड़ा क्योंकि यह प्रयोग हाथ
से निकलने लगा था। सीधे शब्दों में
कहें तो यह प्रयोग
खतरनाक होता जा रहा था।
आइए
जानते हैं कैसे।
फेसबुक
के इन दोनों बॉट्स को अंग्रेजी में बात करना सिखाया गया था। लेकिन पता चला कि
उन्होंने अंग्रेजी को छोड़कर अपनी एक अलग ही किस्म की भाषा विकसित कर उसमें बातचीत
करनी शुरू कर दी थी। यह भाषा उनमें पहले से फीड किए गए कोड से अलग थी और इसे
उन्होंने इंसानों की मदद के बिना ही तैयार कर लिया था।
यह
ऐसी भाषा थी जिसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सिस्टम तो समझ सकते थे, लेकिन इंसान नहीं। दोनों बॉट्स इतनी तेजी से नई चीजें
सीख रहे थे जो इंसान की कल्पना से बाहर थी। जैसे उन्होंने मोलभाव करना सीख लिया
था। बहुत से लोगों
को आशंका थी कि अगर यह
प्रयोग जारी रहता तो न जाने क्या होता। शायद अपनी अलग भाषा का इस्तेमाल करते हुए
रोबोट कुछ कदम भी उठा सकते थे। लेकिन फेसबुक इस बात का खंडन करता है। उसका कहना है
कि यह एक प्रयोग मात्र
था। ऐसे प्रयोग विज्ञान
के क्षेत्र में चलते रहते हैं और प्रयोगों के दौरान कई तरह के अनुभव सामने आना
स्वाभाविक बात है।
आज
चीन , रसिआ, अमेरिका
जैसे देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रोबोट बना रहे है जो आज कोरोना महामारी में हेल्थ
सेक्टर , पेर्सल डेलिवेरी में इस्तेमाल किये जा रहे
है। कई देशो में पुलिस में भी ये रोबोट्स तैनात किये गए है , घर ,
ऑफिस के काम के लिए
उपयोग किये जा रहे है।
हॉलिवुड
फिल्मो के तर्ज़ पर आज कोरोना महामारी का विश्वस्तरीय रूप देखने मिल रहा है जैसे मानो कोई फिल्म देखी
थी जो आज सच हो रही है ,
आखो देखा हाल। बहरहाल,
एक साधारण इंसान के तौर
पर भी ये घटनाएं हमें हॉलीवुड फिल्म 'टर्मिनेटर 3:राइस
ऑफ मशीन्स' , स्टील्थ
आदि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फिल्म
की याद दिला देती हैं जिसमें रोबोट्स इंसानों से ज्यादा समझदार बन जाते
हैं।
फ्रॉड्स से बचने के लिए आज कल आपके पर्सनल ट्रांसक्शन की जानकारी बचाने के लिए OTP, चेक बॉक्स में टिक या इमेज में लिखे हुए शब्द डालना , ईमेल वेरिफिकेशन से अभी हम अपनी निजी सुरक्षा निच्छित कर पा रहे है।
Right sir ji
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteWell done
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