![]() |
बच्चो की सर्दी खांसी,कान बहना l |
- सर्दी खाँसी ,कान,नाक बहना :
पाँच वर्ष की आयु तक नाक बहना , सर्दी खाँसी बच्चो की सबसे सामान्य समस्या है l जब तक बच्चा ठीक ठाक है, खेल रहा है, सामान्य रूप से भोजन खा रहा है, बुखार नहीं है तब तक थोड़ी बहुत सर्दी खाँसी में दवाई की आवश्यकता नहीं है, दादी माँ के नुस्खे शहद, केसर, हल्दी, अदरक, तुलसी का रस पर्याप्त हैं। इसमें दिन को विशेष परेशानी नहीं होती क्योंकि दिन में बच्चा बैठा रहता है, खेलता रहता है, नाक का स्त्राव गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलता रहता है लेकिन रात्रि के समय जब वह समतल पर सोता है तब स्त्राव बाहर न आकर नाक में पीछे की ओर जमा होने लगता है, लगभग 1 से 2 बजे रात्रि तक पूरी नाक बंद हो जाती है, उठकर रोने लगता है फिर वह गोद में सोता है और पलंग पर रोता है। अत: सोते वक्त तकिया कंधे के नीचे रखें जिससे कंधा और सिर दोनों तकिये पर आ जाएँ, बालक लगभग 20° ढलान पर सोता रहे इससे नाक का स्त्राव अपने आप गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलता रहता है। इस समय थोड़ी थोड़ी देर में गुनगुने पेय पदार्थ पानी, दूध, सूप, चाय, काफी जो भी रुचिकर लगे थोड़ा थोड़ा पिलाते रहें, इससे गले के दर्द में आराम मिलता है।
सभी ने महसूस किया है कि जब सर्दी होती है, कान बंद से हो जाते हैं क्योंकि गले और कान के बीच एक नलिका द्वारा सीधा संबंध रहता है। माँ जब शिशु को लेटे लेटे दूध पिलाती है तब जरा सा ठसका लगने पर दूध के साथ संक्रमण गुरुत्वाकर्षण से गले से कान तक पहुँच जाता है, इस कारण शिशु कान खुजलाता है, ज्यादा होने पर कान दुखने और बहने लगता है । इसी वजह से ही बच्चों के अक्सर कान बहते हैं, बड़े होकर हमें कभी लेटकर दूध पीने और खाने का मौका नहीं आता और यह परेशानी नहीं होती। इसमें दिन में तो कोई दिक्कत नहीं होती, रात्रि में यह परेशानी केवल माह की उम्र तक ही रहती है, शिशु 3 माह की आयु तक रात्रि में लगभग तीन बार, 4 से 6 माह में दो बार और 7 से 9 माह की आयु में एक बार दूध पीता है फिर जो रात्रि में 10 बजे दूध पीकर सोता है, सुबह 5 बजे उठता है।
अतः कान बहने को रोकने का सहज उपाय है कि माँ शिशु को हमेशा बैठकर गोद में लेकर ही दूध पिलाएँ, चाहे दिन हो या रात हो। गोद में लेकर दूध पिलाने से शिशु का सिर ऊपर की ओर रहता है, ठसका लगने पर भी दूध गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध ऊपर नहीं जा पाता और कान की इस परेशानी से आसानी से बचा जा सकता है।
सर्दी खाँसी में गरम पानी की भाप दिलाना तुरंत लाभकारी प्रक्रिया है, इसमें किसी औषधियुक्त रसायन मिलाने की आवश्यकता नहीं है। सर्दी में जब नाक बंद होती है या फँसती है तो हम एक नासद्वार बंद करके फिर दूसरा बंद करके तुरंत नाक के स्राव को निकाल देते हैं परंतु शिशु यह नहीं कर पाता।
नाक बंद रहने पर दूध पीते समय मुँह भी बंद हो जाता है, सॉस नहीं ले पाता, दो तीन चूंट पीने के बाद छोड़कर नाराज होकर रोने लगता है, भूख लगी रहती है और बेचारा पी नहीं पाता।
इसी प्रकार खाँसी एक रक्षात्मक प्रक्रिया है जिससे हम श्वास नलिकाओं में फँसे बलगम को छाती की मांसपेशियों को समायोजित करके, दम साधकर एक बार में बाहर निकाल देते हैं। नन्हा बालक यह नहीं कर पाता, बार बार खाँसता है और हम भी पीठ पर हाथ फेरने के सिवाए कुछ नहीं कर पाते। भाप दिलाने से बलगम ढीला हो जाता है और आसानी से बाहर निकल जाता है।
भाप दिलाने के लिए गंज में पानी गरम करके जमीन पर रखें, स्वयं कुर्सी या पलंग पर शिशु को अपनी गोद में लेकर बैठें, स्वयं और बर्तन को चादर से ढंक लें, गंज का ढक्कन थोड़ा सा हटाएँ जिससे भाप धीरे धीरे निकलकर चादर में जमा होती रहे, शिशु का मुँह अपनी ओर ही रखें, भाप की ओर न रखें यानी बच्चे के साथ साथ खुद भी भाप लें, इससे शिशु को भी विश्वास रहेगा और हमें भाप की तीव्रता की जानकारी रहेगी, ज्यादा भाप होने पर ढक्कन बंद कर दें, भाप कम होने पर पुनः ढक्कन हटा दें।
आजकल भाप दिलाने के लिए बिजली के उपकरण उपलब्ध हैं, जिनसे बहुत जल्दी तीव्र गति से भाप निकलती है। इससे भाप दिलाते समय शिशु का चेहरा अपने चेहरे के साथ रखें जिससे भाप की तीव्रता का आभास होता रहे, ज्यादा होने पर एक कदम पीछे हटें। यदि भाप दिलाते समय शिशु रोता है तो और भी अच्छा है कि वह गहरी साँस लेता है, भाप अन्दर तक जाती है और बलगम आसानी से निकल जाता है, लेकिन शिशु जितनी भाप सहन कर सके, उतनी ही देना चाहिए, हमें उसे दुखी और परेशान नहीं करना है। नाक खुल जाने से, बलगम निकल जाने से राहत मिल जाती है, फिर वह आसानी से दूध पीकर सुकून से सो जाता है।
इस समय छाती, माथे पर औषधियुक्त रसायन लगाने की विशेष उपयोगिता नहीं है, सारा दर्द माँ के स्नेह भरे स्पर्श से दूर होता है। आज भी तबियत खराब होने पर हमें माँ की याद आती है, जिसके माथे पर हाथ रखने मात्र से आधी सी परेशानी दूर हो जाती है, यह आजकल स्पर्श चिकित्सा के रूप में प्रतिपादित है।
- पानी की आवश्यकता ;
जो बच्चा माँ के दूध पर निर्भर रहता है उसे 6 माह की आयु तक पानी पिलाने की आवश्यकता नहीं , गर्मी के मौसम में भी नहीं l शिशु की पानी की आवश्यकता की पूर्ति दूध से ही हो जाती है l सोचिये ,पानी न पीने के बावजूद वह हर आधे , एक घण्टे में पेशाब करता है , आखिर पानी कहा से आता है ? पानी माँ के दूध में समाहित (90%) है l
वैसे भी हम चाहे की पूरा दूध पीने के बाद शिशु पानी पिए तो वह नकार देगा ,यदि खली पेट पानी देंगे , वह मज़बूरी बस पियेगा , इससे उसका पेट पानी से भर जायेगा और उतना दूध नहीं पी सकेगा तो दुध की ऊर्जा से वंचित रह जायेगा l अतः पानी की आवश्यकता नहीं है , इसका पालन करना जरुरी है लेकिन यह बात दादी नानी को समझाना कठिन हो जाता है
No comments:
Post a Comment